Thursday, December 16, 2010

गुजार लेते हैं बिन तेरे भी,हज़ारों लम्हों को बेख़ुदी में।

गुजार लेते हैं बिन तेरे भी,
हज़ारों लम्हों को बेख़ुदी में।
नज़र-नज़र में तुम्हीं बसी हो,
है लाज़मी अब तेरा नज़ारा।।

वो देखना तेरा मुझको थमकर,
कि मैंने देखा कई दफ़ा है।
न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,
मुझे लगा तुमने था पुकारा।।

लो आज कहता हूँ तुमसे खुलकर,
तुम्हीं से उल्फ़त है दिल को दिलबर।
तुम्हारी मर्ज़ी है साथ आओ,
तुम्हारी मर्ज़ी करो किनारा।।

बता दो मुझको तुम आज आकर,
कि रिश्ता क्या है मेरा तुम्हारा।
मेरा तो दिल है तेरी अमानत,
क्या तेरा भी दिल है अब हमारा।।
 

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