Thursday, December 16, 2010

मुझे जीने की चाह थी

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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मुझे जीने की चाह थी
एक खुशी की तलाश थी
जिंदगी की आग में जल्‌ते हुए
राह में उन कांटों पर चल्‌ते हुए
एक मुकम्मल जहां की तलाश थी
मैने अप्‌ने अरमानो के मोती
खुशियों के धागों में पिरोना चाहा
दिल की तमन्नाओं को सपनो में सजाना चाहा
पर वो सारे ख्वाब एक झट्के में टुट गये
हम जिंदगी से ही रुठ गये
वो तमन्ना, वो अरमान न जाने कहां खो गये
आज सब कुछ उन्‌की बेवफ़ाई में दफ़न हो गये


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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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