Saturday, December 25, 2010

किनारों पर सागर के खजाने नहीं आते

किनारों पर सागर  के  खजाने  नहीं  आते ,
फिर  जीवन  में  दोस्त  पुराने  नहीं  आते ,
जी लो इन पलो  हँस के  जनाब ,
फिर लौट के दोस्ती के ज़माने नहीं आते

Thursday, December 16, 2010

है दिल फेंक आशिक जमाने बहुत अपने दामन को बचा कर रखिये

है दिल फेंक आशिक जमाने में बहुत,
अपने दामन को बचा कर रखिये...
न ठहर जाये अश्क आँखों में कहीं,
अपनी पलकों को झुका कर रखिये...
ईश्क में मिलती है बस तनहाई यहाँ,
अपने दिल को गुलशन बना कर रखिये...
गम में रोना न पड़ जाये उम्र भर तुझको,
उस सितमगर को मेहमां बना कर रखिये...
बेवफ़ा हैं ये जमाने के रहनुमा सारे,
दिल के आईने में खुद को सजा कर रखिये...
एसा न हो लग जाये चोट दिल पर कोई,
अपने दिल को पत्थर सा बना कर रखिये...
कर देगी बदनाम दुनियाँ की जालिम नजरे,
खुद को दुनियाँ की नजरों से बचा कर रखिये...
 

निभा दी हैं हमने तो मोहब्बत की सब रस्मे

हमे सब तरफ़ एक तू ही तू नज़र आए
दिल तलाशता है जिस मंज़र को वो नज़र तो आए


हम छोड़ देंगे पीना जाम से सनम
पहले तेरी आँखो में हमे मय मोहब्बत की तो नज़र आए

तय कर लेंगे हम तेरे साथ यह इशक़ का सफ़र
पर तेरे साथ हमे अपनी मंज़िल भी तो कोई दिखाए

निभा दी हैं हमने तो मोहब्बत की सब रस्मे
तेरी बातो से भी हमे कुछ वफ़ा की महक तो आए

सो जाएँगे तेरे बाहों के घेरे में हम सकूँ की नींद
पर तुझे भी तो कभी हमारी याद इस तरह शिद्दत से आए!!
 
 
 

प्यार क्या होता है


एक प्यार करने वाले से पूछा गया कि प्यार क्या होता है? कैसा लगता है? तो उसका जवाब था कि प्यार गेहूँ की तरह बंद है, अगर पीस दें तो उजला हो जाएगा, पानी के साथ गूंथ लो तो लचीला हो जाएगा... बस यह लचीलापन ही प्यार है, लचीलापन पूरी तरह समर्पण से आता है, जहां न कोई सीमा है न शर्त। प्यार एक एहसास है, भावना है। प्रेम परंपराएं तोड़ता है। प्यार त्याग व समरसता का नाम है।

प्रेम की अभिव्यक्ति सबसे पहले आंखों से होती है और फिर होंठ हाले दिल बयां करते हैं। और सबसे मज़ेदार बात यह होती है कि आपको प्यार कब, कैसे और कहां हो जाएगा आप खुद भी नहीं जान पाते। वो पहली नज़र में भी हो सकता है और हो सकता है कि कई मुलाकातें भी आपके दिल में किसी के प्रति प्यार न जगा सकें।

प्रेम तीन स्तरों में प्रेमी के जीवन में आता है। चाहत, वासना और आसक्ति के रूप में। इन तीनों को पा लेना प्रेम को पूरी तरह से पा लेना है। इसके अलावा प्रेम से जुड़ी कुछ और बातें भी हैं -
प्रेम का दार्शनिक पक्ष- प्रेम पनपता है तो अहंकार टूटता है। अहंकार टूटने से सत्य का जन्म होता है। यह स्थिति तो बहुत ऊपर की है, यदि हम प्रेम में श्रद्धा मिला लें तो प्रेम भक्ति बन जाता है, जो लोक-परलोक दोनों के लिए ही कल्याणकारी है। इसलिए गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ है, क्योंकि हमारे पास भक्ति का कवच है। जहां तक मीरा, सूफी संतों की बात है, उनका प्रेम अमृत है।

साथ ही अन्य तमाम रिश्तों की तरह ही प्रेम का भी वास्तविक पहलू ये है कि इसमें भी संमजस्य बेहद ज़रूरी है। आप यदि बेतरतीबी से हारमोनियम के स्वर दबाएं तो कर्कश शोर ही सुनाई देगा, वहीं यदि क्रमबद्ध दबाएं तो मधुर संगीत गूंजेगा। यही समरसता प्यार है, जिसके लिए सामंजस्य बेहद ज़रूरी है।

प्रेम का पौराणिक पक्ष- प्रेम के पौराणिक पक्ष को लेकर पहला सवाल यही दिमाग में आता है कि प्रेम किस धरातल पर उपजा-वासना या फिर चाहत....? माना प्रेम में काम का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन महज वासना के दम पर उपजे प्रेम का अंत तलाक ही होता है। जबकि चाहत के रंगों में रंगा प्यार ज़िंदगीभर बहार बन दिलों में खिलता है, जिसकी महक उम्रभर आपके साथ होती है।

๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

दर्द के समन्दर में.......

दर्द के समन्दर में.......
चाहत के पुष्प चढाये हमने
पीड़ाओं के मन्दिर में
फिरते रहे तेरी परछाई खोजते
आकांक्षाओं के खण्डहर में
कई बार डूबकर देखा हमने
विरह की गहराईयों में
मिला न कोई हीरा-मोती
इस दर्द के समन्दर में ॰॰॰॰॰॰

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चालो

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो

नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो

ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़निमत है
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो

अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो

तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है
तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो
 

रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये

रफ़्ता रफ़्ता ग़ैर अपनी ही नज़र में हो गये
वाह री ग़फ़्लत तुझे अपना समझ बैठे थे हम

होश की तौफ़ीक़ भी कब अहल-ए-दिल को हो सकी
इश्क़ में अपने को दीवाना समझ बैठे थे हम

बेनियाज़ी को तेरी पाया सरासर सोज़-ओ-दर्द
तुझ को इक दुनिया से बेगाना समझ बैठे थे हम

कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आशना को क्या समझ बैठे थे हम

भूल बैठी वो निगाह-ए-नाज़ अहद-ए-दोस्ती
उस को भी अपनी तबीयत का समझ बैठे थे हम

हुस्न को इक हुस्न की समझे नहीं और ऐ 'फ़िराक़'
मेहरबाँ नामेहरबाँ क्या क्या समझ बैठे थे हम
 

"अपनी मुस्कुराहटों की रोशनी फैला दो,

"अपनी मुस्कुराहटों की रोशनी फैला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰
हँसती हुई आँखों के दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

बहुत दिनों से इस कमरे में
अमावस का पहरा है
अपने चमकते चेहरे से इसे जगमगा दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

खिलखिलाते हो, तो होंठों से
फूटती है फूलझड़ियाँ,
अपने सुर्ख होंठों के दो फूल खिला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

कहाँ हो, किधर हो, ढूँढता फिरता हूं,
कब से तुम्हे
ज़रा अपनी पद-चाप सुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

बेरंग और बुझा सा खो गया हूँ,
गहरे तमस में
आज दीवाली का कोई गीत गुनगुना दो
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰

हँसती हुई आंखों के
दो चिराग जला दो,
यहाँ अँधेरा है ॰॰॰।"
 

अरमान हैं खंज़र मेरे, और वक्त उनकी शान;

जिगर जमीन, मेरा दिल है आसमान।
जहाँ भी डाल दूँ डेरा, वहीं मकान।।

हँसी हजार की, है लाखों की मुस्कान;
देता हूँ मुफ्त, अगर मिलें कद्रदान।

गुल है मेरा दिल, मैं हूँ बागवान;
सजाओ इल्म से, मानूँगा एहसान।

आँखों में हैं,ख्वाबों के सैकड़ों तूफान;
साहिल मिलेगा तुमको, ढूँढो कोई उफान।

अरमान हैं खंज़र मेरे,  और वक्त उनकी शान;
तराशो बेरुखी से, पाओ नई पहचान।
 

हैं कुछ खाते पुराने भी

हैं कुछ खाते पुराने भी
अभी मुझको नहीं टोको मुझे कुछ दूर जाना है।
कि रस्ता तुम नहीं रोको अभी मंज़िल को पाना है।।

बहुत एहसान हैं मुझ पर रहा इनकार कब मुझको,
हैं कुछ खाते पुराने भी उन्हें पहले चुकाना है।

तेरे हाथों में डोरी है चलेगी तेरी ही मर्ज़ी,
मगर देनी पड़गी ढील ग़र ऊँचा उड़ना है।

तुम्हें देखूँगा फुरसत से करूँगा प्यारी बातें भी,
अभी खामोश रहने दे कि आँखों में निशाना है।

बड़ी मुश्किल से मिलती है मेरी ही तरह बिल्कुल तू,
जहाँ हम दाल दें डेरा वही अपना ठिकाना है।

मेरी हमराज है तू ज़िन्दगी, हमदर्द भी है तू,
तुझे ऐ खूबसूरत दोस्त महबूबा बनाना है।
 

न पेश आओ यूँ बेरुखी से ऐ हमदम;

दोषी दिल बेरहम है
न पेश आओ यूँ बेरुखी से ऐ हमदम;
ज़रा दिल से पूछो वहाँ अब भी हम हैं।
यूँ नज़रे चुराने की ज़रूरत ही क्या है,
हमें भी दिखाओ वहाँ कितने गम हैं।

तेरे सारे गम मेरे सीने में भर दे,
मेरी सारी खुशियों को दिल में जगह दे;
तेरी ही खुशी से मेरी भी खुशी है;
नहीं फर्क पड़ता वो ज्यादा या कम है।

कभी तुम ज़रूरत हमारी जो समझो,
है इतनी गुजारिश हमें इत्तला दो,
खड़ा तुमको दर पे दिवाना मिलेगा;
कहेगा, 'बुलाया ये तेरा करम है'।

तेरे मामलों में हो मेरा दखल क्यूँ,
मगर कर ही देता है दिल ये पहल क्यूँ;
इसी की हुकूमत है नज़र-ओ-कदम पर;
हैं हम रूबरू दोषी दिल बेरहम है।

यकीनन मुझे इश्क करना न आया ,
तेरे दिल को अपना बना मैं न पाया;
क्या शिकवा करूँ तुझसे ऐ मेरे दिलवर;
कि अब बस मुझे अपने जीने का गम है।
 

आप ने हाथ जो दिया होता ।

आप ने हाथ जो दिया होता ।
 
वक्त ने साथ जो दिया होता;
आप ने हाथ जो दिया होता।

आदमी हम भी काम के होते;
इक दफा 'हाँ' जो कह दिया होता।

हौसले की कमी न थी मुझमें;
इक इशारा जो मिल गया होता।

लोग कहते न निकम्मा मुझको;
काम मुझसे जो कुछ लिया होता।

मौत तो मिलती सुकून की मुझको;
साफ ग़र 'ना' ही कह दिया होता।
 

तेरी हर ख़्वाहिश को सर-आँखों पर रखता था कोई;

इश्क़ की हमसे बात ना करना अब हम दुनिया वाले हैं;
दर्द नहीं मेरी आँखों में इनमें खुशी के उजाले हैं।

और कोई था जो तेरी हर बात पे हँसता रहता था;
ग़म देकर ही जो खिलते हैं हम तो ऐसे छाले हैं।

तेरी हर ख़्वाहिश को सर-आँखों पर रखता था कोई;
कत्ल करेंगे अरमानों का अब यह हसरत पाले हैं।

पागल था पागलपन में हमराज़ बना डाला तुमको;
ढेरों राज दफन इस दिल में अब ऐसे दिलवाले हैं।

वह कायर था, नाज़ुकदिल था प्यार-मुहब्बत करता था;
हम मर्दों के क्या कहने हम तो पत्थर-दिल वाले हें।
 

गुजार लेते हैं बिन तेरे भी,हज़ारों लम्हों को बेख़ुदी में।

गुजार लेते हैं बिन तेरे भी,
हज़ारों लम्हों को बेख़ुदी में।
नज़र-नज़र में तुम्हीं बसी हो,
है लाज़मी अब तेरा नज़ारा।।

वो देखना तेरा मुझको थमकर,
कि मैंने देखा कई दफ़ा है।
न लफ्ज़ था कोई उन लबों पर,
मुझे लगा तुमने था पुकारा।।

लो आज कहता हूँ तुमसे खुलकर,
तुम्हीं से उल्फ़त है दिल को दिलबर।
तुम्हारी मर्ज़ी है साथ आओ,
तुम्हारी मर्ज़ी करो किनारा।।

बता दो मुझको तुम आज आकर,
कि रिश्ता क्या है मेरा तुम्हारा।
मेरा तो दिल है तेरी अमानत,
क्या तेरा भी दिल है अब हमारा।।
 

तुम्हे देख ए हमनशी कदम खुद ब खुद चलते है

तुम्हे देख ए हमनशी कदम खुद ब खुद चलते है
बड़ी मुश्किल से जज़्बा-ओ-दिल हमसे संभलते है |

मिलने तुझ से सातो समंदर भी पार कर जाएँगे
महफूज़ रखेंगे तेरे साए हमे ये सोच निकलते है |

अंधेरों का ख़ौफ़ नही रहा जिगर-ओ-जान को हमारी
मोहोब्बत के गवाह-ए-चिराग रौशन होके जलते है |

महबूब-ए-आफताब-ओ-जहन के राज़ –ए-ख़यालात यहाँ
वो भी महजबी-ओ-दिलकशी से मुलाकात हो मचलते है |

फलक-ओ-आईने से निगाहे निसार नही होती गुलशन आरा
आपकी आरज़ू में झिलमिल सितारे हज़ारों नक़ाब बदलते है. |


 ๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

माँगा सिर्फ़ तुझे,और कुछ भी नही

दर्पण में अपनी छवि देख रहे थे
देखा तेरा अक्स,और कुछ भी नही |

जमाने के फसाने सुनने चाहे हमने
सुनी तेरी धड़कन,और कुछ भी नही |

खुदा से गुनाहो की माफी माँगनी चाही
माँगा सिर्फ़ तुझे,और कुछ भी नही |

मुशायरे मे बैठे अपनी नज़्म भूल गये
याद रहे बस तुम,और कुछ भी नही |

काग़ज़ कलम लेकर ग़ज़ल लिखनी चाही
एक तेरा नाम लिखा ,और कुछ भी नही |

 ๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

मेरे अल्फाज़ आपकी तारीफ़ के लायक तो नहीं

मेरे अल्फाज़ आपकी तारीफ़ के लायक तो नहीं
आपको बयान कर सकूं, मेरी हैसियत तो नहीं
दोस्त आपकी दोस्ती मेरे सर आँखों पे
कबूला आपने, ज़र्रा नवाजी आपकी वरना मेरी ऐसी शक्सियत तो नहीं

हमेशा खुश रहो....इस दुआ के साथ .

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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चंद लफ्जो मे सिमट गई जिन्दगी

चंद कागजो के टुकडो पर
चंद अल्फझो मे सिमटने
लगी जिन्दगी
क्या इतनी छोटी सिमट
के रह गई जिन्दगी
गमो को ही क्यूँ
पि कर रह गई जिन्दगी
खुशियो ने दामन बीच मजधार
क्यों छोडा जिन्दगी
जिसे पूजा जिसे चाह
फिर क्यूँ उसने भी
विस्वास तोडा जिन्दगी
चलो अच्हा ही''ब्रजेन्द्'' जो चंद
लफ्जो मे सिमट गई जिन्दगी


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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है

बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है

न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है

उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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मुझे जीने की चाह थी

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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मुझे जीने की चाह थी
एक खुशी की तलाश थी
जिंदगी की आग में जल्‌ते हुए
राह में उन कांटों पर चल्‌ते हुए
एक मुकम्मल जहां की तलाश थी
मैने अप्‌ने अरमानो के मोती
खुशियों के धागों में पिरोना चाहा
दिल की तमन्नाओं को सपनो में सजाना चाहा
पर वो सारे ख्वाब एक झट्के में टुट गये
हम जिंदगी से ही रुठ गये
वो तमन्ना, वो अरमान न जाने कहां खो गये
आज सब कुछ उन्‌की बेवफ़ाई में दफ़न हो गये


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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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बद-नसीब कदमों को..जिस तरफ़ भी ले जायें..रास्तों की मर्ज़ी है..

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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बे-ज़मीं लोगों को..
बे-करार आंखों को..
बद-नसीब कदमों को..
जिस तरफ़ भी ले जायें..
रास्तों की मर्ज़ी है..

बे-निशां जज़ीरों पर..
बद-गुमा शहरों में..
बे-ज़ुबां मुसाफ़िर को..
जिस तरफ़ भी भटकायें..
रस्तों की मर्ज़ी है..

रोक लें या बढने दें..
थाम लें या गिरने दें..
वस्ल की लकीरों को..
तोड दें या मिलने दें..
रास्तों की मर्ज़ी है..

अजनबी कोई लाकर..
हमसफ़र बना डालें..
साथ चलने वालों की..
राह जुदा बना डालें..
या मुसाफ़तें सारी..
खाक मे मिला डालें..
रास्तों की मर्ज़ी है..

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के

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๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे
किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के
न जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें

अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी
हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का
लगाये हैं हम ने भी सपनों के पौधे
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का

मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये
मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे
ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो
कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे

जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा
नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से
रवायत है शायद ये सदियों पुरानी
शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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बस हकीकत तो अपनी बयां कीजिये...

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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शाम है हँसकर बिता लीजिये
ऐसे डर कर ना गुमसुम रहा कीजिये

क्या पता कल किसे मौत आये
रात भर साथ अपना निभा लीजिये

है कयामत के दीदार की आरज़ू
फिर से चेहरे से घूँघट हटा लीजिये

मुझको कुछ भी मय्यसर हुआ ना सही
आखिरी जAAम हँसकर पिला दीजिये

हम तलबगार होंगे तेरे उम्र भर
बस हकीकत तो अपनी बयां कीजिये...

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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हो सके तो यादों को सजाये रखना

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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कुछ फ़ासले बनाये रखना
अपनी अंतरंगता छिपाये रखना
न कहना किसी से दास्तान-ए-मोहब्बत
हकीकत ये सबसे छुपाये रखना
न जाने कब किसकी नज़र लग जाये
नज़रों से खुद को बचाये रखना
मिले हैं तो बिछ्ड़ेंगे ज़रूर लेकिन
हो सके तो यादों को सजाये रखना

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ज़िंदगी का नशा मेरा धुआ बन कर उड़ गया…

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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ख्वाबों और ख़्यालों का चमन सारा जल गया,
ज़िंदगी का नशा मेरा धुआ बन कर उड़ गया…
जाने कैसे जी रहे है, क्या तलाश रहे है हम,
आँसू पलकों पर मेरी ख़ुशियों से उलझ गया…

सौ सदियों के जैसे लंबी लगती है ये ग़म की रात,
कतरा कतरा मेरी ज़िंदगी का इस से आकर जुड़ गया…
मौत दस्तक दे मुझे तू, अब अपनी पनाह दे दे,
ख़तम कर ये सिलसिला, अब दर्द हद से बढ़ गया…

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको

๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑
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आई जो कभी दूरी ,कर देगी जुदा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको

रिश्तों की कसौटी पर खुद को ही मिटा आए
हम चलते रहे तन्हा, थे साथ नहीं साए
अश्कों के सिवा उनसे, कुछ भी न मिला हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको

मौला ये बता दे मुझे, मेरा दिल क्यूँ सुलगता है
सूरज में जलन है गर, क्यूँ चाँद पिघलता है
साँसों के भी चलने से, लगता है बुरा हमको
वो लौट न पाएँगे मालूम न था हमको

सोचा कि मना लूँ उन्हें, मिन्नत भी कई कर लूँ
कदमों में गिर जाऊं, बाहों में उन्हें भर लूँ
होगा ये नही लेकिन, आसां जो लगा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको

गिरते हुए कदमों की, आहट पर न जाना तुम
मर जाएँगे हम यूँ ही, न अश्क़ गिराना तुम
आँसू ये तेरे अब भी, देते हैं सज़ा हमको
वो लौट न पाएँगे, मालूम न था हमको

๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑
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बीते सफर को एक नज़र देख मैं अपने कदम फिर बढाँउगा।

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर........... ♡
इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । ♡
मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और.... ♡
जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । ♡
युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और.... ♡
जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती । ♡
ये सिलसिला यहीं चलता रहता..... ♡
फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा.......... ♡ "
तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? " ♡♡
तब मैंनें कहा................ ♡
मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे ♡
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी, ♡
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं...... ♡
तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं अपना सफ़र तय करूँगा.......♡
एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा.......... ♡
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा। ♡ ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा......... ♡
मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी...... ♡
मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी
(दिल की लहरें .•´¨๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑ )

में अकेला नहीं हु ईश्वर मेरे साथ है

में अकेला नहीं हु ईश्वर मेरे साथ है |
जब ईश्वर मेरे साथ है तो घबराना केसा |
वह मुझे संभालेंगे वह मुझे सही रास्ता दिखाएंगे |
और उस पर चलने की शक्ति भी देंगे
में अपने आपको ईश्वर को समर्पित करता हु
और सभी परिस्थियों में हमेशा प्रशन्न रहता हु

๑۩๑ ब्रजेन्द्र यादव ๑۩๑

ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता

क्यों कहते हो मेरे साथ कुछ भी बेहतर नही होता
सच ये है के जैसा चाहो वैसा नही होता
कोई सह लेता है कोई कह लेता है
क्योंकि ग़म कभी ज़िंदगी से बढ़ कर नही होता
आज अपनो ने ही सिखा दिया हमें
यहाँ हर ठोकर देने वाला पत्थर नही होता
क्यों ज़िंदगी की मुश्क़िलों से हारे बैठे हो
इसके बिना कोई मंज़िल, कोई सफ़र नही होता
कोई तेरे साथ नही है तो भी ग़म ना कर
ख़ुद से बढ़ कर कोई दुनिया में हमसफ़र नही होता


๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,

लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
 ๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है

ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है .......


๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

माना की मेरी बर्बादी में गेरों का इशारा था,

माना की मेरी बर्बादी में गेरों का इशारा था,
तुम पर कोई आंच आए ये हमको कब गंवारा था,
तींरो की बोछार किसी और ने की थी उस वक़्त,
लेकिन जो दिल पर लगा वो तीर तुम्हारा था.

(¨`• ब्रजेन्द् .•´¨)

मेरा बिछडा भाई याद आया मुझे

दिल जो माझी की दुनिया में लाया मुझे
मेरा बिछडा भाई याद आया मुझे
राह की मुश्किलें और बढती गयीं
ऐसा खोया कि फिर घर न पाया मुझे
वक्त-ऐ-रुखसत मेरी ज़िन्दगी ने कहा
बे रुखी ने बहुत दिन रुलाया मुझे
हसरतों का चमन राख़ सी बन गया
जाने किस आग में है जलाया मुझे
इक मसीहा ने कितना रुलाया मुझे
तूने उल्फत की बातें कहाँ सीख लीं
ये तरीका तेरा कुछ न भाया मुझे
मेरा बिछडा भाई याद आया मुझे"

Dev I miss you alot,

मेरे भाई आप इस दुनिया में जहा भी है में आप को पल पल याद करता हु | में आपको कभी नहीं भूल सकता और में उस परम शक्ति से प्रार्थना करता हु की हर जन्म में आप मेरे बडे भाई के रूप में मिलो |

आपका छुटकू |
๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

कल तक तो हौसला था दुनिया को जीतने का

कल तक तो हौसला था दुनिया को जीतने का
अब तकदीर बांटती है तो हिस्सा नहीं लेता ... फिर भी ...
फिर भी तू चाल चल कर तो देख ..
हार जाने का हौसला है मुझमें !!!
๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते

सदा खुशियों से भरे हों तेरे रास्ते
हंसी तेरे चेहरे पे रहे इस तरह
खुशबू फूल का साथ निभाती है जिस तरह
सुख इतना मिले की तू दुःख को तरसे
पैसा शोहरत इज्ज़त रात दिन बरसे
आसमा हों या ज़मीन हर तरफ तेरा नाम हों
महकती हुई सुबह और लहलहाती शाम हो
तेरी कोशिश को कामयाबी की आदत हो जाये
सारा जग थम जाये तू जब भी गए
कभी कोई परेशानी तुझे न सताए
रात के अँधेरे में भी तू सदा चमचमाए
दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये
खुशियाँ तेरे दर से न जाये
इक छोटी सी अर्जी है मान लेना
हम भी तेरे दोस्त हैं ये जान लेना
खुशियों में चाहे हम याद आए न आए
पर जब भी ज़रूरत पड़े हमारा नाम लेना
इस जहाँ में होंगे तो ज़रूर आएंगे
दोस्ती मरते दम तक निभाएंगे

ब्रजेन्द् :-

सच्चे शब्दों में सच के अहसास लिखेंगे ..

सच्चे शब्दों में सच के अहसास लिखेंगे ..
वक्त पढे जिसको कुछ इतना खास लिखेंगे
गीत गजल हम पर लिखेंगे लिखने वाले,
हमने कलम उठाई तो इतिहास लिखेंगे..

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

तुमने भी हमे गैरो की तरह ही समझा है

तुमने भी हमे गैरो की तरह ही समझा है
उनमे और तुम मे कोई फ़र्क
नही दिखता है
अब कहने के लिये बचा ही क्या
कम से कम सच्चाई को तो
समझा होता अपनो ने
कत्ल कर दिया मेरे ऐतबार का
अब किस काम के है
ज़िन्दगी मे रिश्तो के फ़ेरे
पुरानी सोच मे नये सबेरे.

ब्रजेन्द्

दर्द-ए-उल्फत

दर्द-ए-उल्फत में आंसू बहाए बहुत
इश्क के रंज हमने उठाये बहुत

उनकी जुल्फों की खुशबू न हम पा सके
कहने को नाज़ उनके उठाये बहुत

साथ मिलकर कोई गुनगुनाया नहीं
गीत हमने मुहब्बत के गाये बहुत

उनसे इज़हार तक कर न पाई जुबां
कहने को होंठ हमने हिलाए बहुत

सूरते-हाल फिर भी संभल ना सकी
हमने तन से पसीने बहाए बहुत

वक़्त हमको कभी रास आया नहीं
अपनी हालत पे हम तिलमिलाए बहुत

आंसुओं के समंदर पिए उम्र भर
यूँ दिखावे को हम मुस्कराए बहुत

अंधी राहों पे ही लोग चलते रहे
हमने गलिओं में दीपक जलाये बहुत

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

मैने मुडके देखा राहो को,

आज जब मैने मुडके देखा राहो को,
तो दूर तुम नजर आये !
वही मुस्कुराहठ और नादानी आंखो मे,
देखा हमने अपने हथो को जो खाली नजर आये !
कहते है वक्त के काफिर है जिसके साथ मै चला हु,
हो सके तो देना अपने आंचल को, राह कट जायेगी उसी के सहारे |

๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

वह कसम तेरी बड़ी महसूस होती है

वह कसम तेरी बड़ी महसूस होती है

अधूरी सी ज़िन्दगी महसूस होती है
मुझे तेरी कमी महसूस होती है
ये पलकें शबनमी सी क्यों हुई है आज !!!
इन आँखों में एक नमी सी महसूस होती है
उसके होंटों पर मेरा नाम कांपता सा रह गया
जुदाई में एक तड़प सी महसूस होती है
हमेशा साथ रहने की कसम खाई थी !!!
वह कसम तेरी बड़ी महसूस होती है |

ब्रजेन्द्र यादव :---

तिनका तिनका तूफ़ान में बिखरते चले गए

तिनका तिनका तूफ़ान में बिखरते चले गए
तन्हाई कि गहराइयों में उतरते चले गए
उड़ते थे जिन दोस्तो के सहारे आसमानों में हम
१-१ करके हम सब बिछड़ते चले गए

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

वो करके वादा बस आते, आते, आते रह गए

वो करके वादा बस आते, आते, आते रह गए

हम उनसे वफ़ा क़यामत तक निभाते रह गए
वो करके वादा बस आते, आते, आते रह गए

मेरी आँखों में लहू था, कुछ दिल पे ज़ख्म थे
हो शक न उसको इसलिए मुस्कराते रह गए

आस्मां तक जाने का एक ख्वाब सा देखा था
इस आस कफस में परिंदे पंख फैलाते रह गए

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

भूल गये खुद को अब खुद से ही अनजान हैं

भूल गये खुद को अब खुद से ही अनजान हैं,
कभी जाने-पहचाने कभी अजनबी से इंसान हैं.
पल के साथी बने और पल के बने मेरे दोस्त,
क्या करे बयां जो खुद नहीं खुद के राजदान हैं.
फासले कम नहीं होते सफ़र के बाद सफ़र,
बहुत दूर मंजिल क्या बतायें कितना परेशान हैं.

๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

मेरा सफ़र

नजाने क्यू वक़्त इस तरह चला जाता है .
जो वक़्त बुरा है वो पलट के सामने आता है.
और जिस वक़्त को हम चाहते है ,
वो वक़्त एक लम्हा बनकर बीत जाता है .

ब्रजेन्द्र यादव :---

इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे

इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे
इनती खुशियाँ भी न देना, दुःख पर किसी के हंसी आने लगे ।

नहीं चाहिए ऐसी शक्ति जिसका निर्बल पर प्रयोग करूँ,
नहीं चाहिए ऐसा भाव किसी को देख जल-जल मरूँ ।
ऐसा ज्ञान मुझे न देना अभिमान जिसका होने लगे,
ऐसी चतुराई भी न देना लोगों को जो छलने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।

इतनी भाषाएँ मुझे न सिखाओ मातृभाषा भूल जाऊं,
ऐसा नाम कभी न देना कि ब्रजेन्द् कौन है भूल जाऊं ।
इतनी प्रसिद्धि न देना मुझको लोग पराये लगने लगे,
ऐसी माया कभी न देना अंतरचक्षु भ्रमित होने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।

ऐसा भग्वन कभी न हो मेरा कोई प्रतिद्वंदी हो,
न मैं कभी प्रतिद्वंदी बनूँ, न हार हो न जीत हो।
ऐसा भूल से भी न हो, परिणाम की इच्छा होने लगे,
कर्म सिर्फ करता रहूँ पर कर्ता का भाव न आने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे ।

ज्ञानी रावण को नमन, शक्तिशाली रावण को नमन,
तपस्वी रावण को स्विकरूं, प्रतिभाशाली रावण को स्विकरूं ।
पर ज्ञान-शक्ति की मूरत पर, अभिमान का लेपन न हो,
स्वांग का भगवा न हो, द्वेष की आँधी न हो, भ्रम का छाया न हो,
रावण स्वयम् का शत्रु बना, जब अभिमान जागने लगे ।
इतनी ऊँचाई न देना ईश्वर कि धरती पराई लगने लगे

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩๑

मैं अपनी तमन्नाओं को यूँ दबाता चला गया ,

मैं अपनी तमन्नाओं को यूँ दबाता चला गया ,
उसके हर जुल्म को यूँ मिटाता चला गया ,
वो समझे भी नहीं तनिक हमारे इशारे को कभी ,
या वो हमारी नजरों से नजर चुराता चला गया ,
जख्म मैंने लिए इश्क के और लेता चला गया ,
वो इन जख्मों को और कुरेदता चला गया ,
मैंने हटने ना दी इन मुस्कुराहटों को चेहरे से कभी ,
और वो इन मुस्कुराहटों को सच्चा समझता चला गया ,
उनकी आँखों में इज़हार आएगा कभी ,
इंतज़ार में इतना सोंचा और सब कुछ गवाता चला गया .

ब्रजेन्द्र यादव :---

चले गए मुसाफिर मंजिलो की और

चले गए मुसाफिर मंजिलो की और,
पर आज भी उनके कदमो के निसान बाकी है
अभी मत कहो की हम प्यार के काबिल है,
मोहब्बत में कुछ और इलज़ाम बाकी है
सजने दो महफ़िल को कुछ और देर यारो,
अभी उनके नाम कुछ और जाम बाकी है
क्यों आते हो चहरे बदल - बदल कर,
अभी इस दिल में आपकी कुछ पहचान बाकी है
केसे लिखना छोड़ दू दिल की बाते  ๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑
अभी मेरे छाने वालो में कुछ नाम बाकी है,

 

मैं अपनी तमन्नाओं को यूँ दबाता चला गया

मैं अपनी तमन्नाओं को यूँ दबाता चला गया ,
उसके हर जुल्म को यूँ मिटाता चला गया ,
वो समझे भी नहीं तनिक हमारे इशारे को कभी ,
या वो हमारी नजरों से नजर चुराता चला गया ,
जख्म मैंने लिए इश्क के और लेता चला गया ,
वो इन जख्मों को और कुरेदता चला गया ,
मैंने हटने ना दी इन मुस्कुराहटों को चेहरे से कभी ,
और वो इन मुस्कुराहटों को सच्चा समझता चला गया ,
उनकी आँखों में इज़हार आएगा कभी ,
इंतज़ार में इतना सोंचा और सब कुछ गवाता चला गया .

ब्रजेन्द्र यादव :---

मेरा परिचय

तुम सोच रहे हो मेरा परिचय क्या
मैं ख्वाब हूँ कोई तथ्य नहीं
मैं आशा हूं, अभिलाषा हूँ
कोई जीवन का सत्य नहीं
मैं हिस्सा नहीं हकीक़त का
एक मीठी सी अंगडाई हूँ
मैं इस दुनिया के साथ भी हूँ
और "A" की तन्हाई भी ......


मुझसे मिलिये॰॰॰॰॰॰॰॰
ब्रजेन्द्र यादव :- अलवर ( राजस्थान ) भारत गणराज्य..। दूरभाष...