Thursday, December 16, 2010

तुम्हे देख ए हमनशी कदम खुद ब खुद चलते है

तुम्हे देख ए हमनशी कदम खुद ब खुद चलते है
बड़ी मुश्किल से जज़्बा-ओ-दिल हमसे संभलते है |

मिलने तुझ से सातो समंदर भी पार कर जाएँगे
महफूज़ रखेंगे तेरे साए हमे ये सोच निकलते है |

अंधेरों का ख़ौफ़ नही रहा जिगर-ओ-जान को हमारी
मोहोब्बत के गवाह-ए-चिराग रौशन होके जलते है |

महबूब-ए-आफताब-ओ-जहन के राज़ –ए-ख़यालात यहाँ
वो भी महजबी-ओ-दिलकशी से मुलाकात हो मचलते है |

फलक-ओ-आईने से निगाहे निसार नही होती गुलशन आरा
आपकी आरज़ू में झिलमिल सितारे हज़ारों नक़ाब बदलते है. |


 ๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑

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