तुम्हे देख ए हमनशी कदम खुद ब खुद चलते है
बड़ी मुश्किल से जज़्बा-ओ-दिल हमसे संभलते है |
मिलने तुझ से सातो समंदर भी पार कर जाएँगे
महफूज़ रखेंगे तेरे साए हमे ये सोच निकलते है |
अंधेरों का ख़ौफ़ नही रहा जिगर-ओ-जान को हमारी
मोहोब्बत के गवाह-ए-चिराग रौशन होके जलते है |
महबूब-ए-आफताब-ओ-जहन के राज़ –ए-ख़यालात यहाँ
वो भी महजबी-ओ-दिलकशी से मुलाकात हो मचलते है |
फलक-ओ-आईने से निगाहे निसार नही होती गुलशन आरा
आपकी आरज़ू में झिलमिल सितारे हज़ारों नक़ाब बदलते है. |
๑۩๑ब्रजेन्द्๑۩๑
No comments:
Post a Comment