तुमने भी हमे गैरो की तरह ही समझा है
तुमने भी हमे गैरो की तरह ही समझा है
उनमे और तुम मे कोई फ़र्क
नही दिखता है
अब कहने के लिये बचा ही क्या
कम से कम सच्चाई को तो
समझा होता अपनो ने
कत्ल कर दिया मेरे ऐतबार का
अब किस काम के है
ज़िन्दगी मे रिश्तो के फ़ेरे
पुरानी सोच मे नये सबेरे.
ब्रजेन्द्
No comments:
Post a Comment