Thursday, December 16, 2010

बद-नसीब कदमों को..जिस तरफ़ भी ले जायें..रास्तों की मर्ज़ी है..

๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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बे-ज़मीं लोगों को..
बे-करार आंखों को..
बद-नसीब कदमों को..
जिस तरफ़ भी ले जायें..
रास्तों की मर्ज़ी है..

बे-निशां जज़ीरों पर..
बद-गुमा शहरों में..
बे-ज़ुबां मुसाफ़िर को..
जिस तरफ़ भी भटकायें..
रस्तों की मर्ज़ी है..

रोक लें या बढने दें..
थाम लें या गिरने दें..
वस्ल की लकीरों को..
तोड दें या मिलने दें..
रास्तों की मर्ज़ी है..

अजनबी कोई लाकर..
हमसफ़र बना डालें..
साथ चलने वालों की..
राह जुदा बना डालें..
या मुसाफ़तें सारी..
खाक मे मिला डालें..
रास्तों की मर्ज़ी है..

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*•.¸ ๑۩๑ ब्रजेन्द् ๑۩۩
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